ऐ मलिहाबाद के रंगीन गुलिस्तान अलविदा
अलविदा आये सरज़मीन-ए-सुब’ह-ए-खानदान अलविदा
अलविदा आये-किश्वर-ए-शे’र-ओ-शबिस्तां अलविदा
अलविदा आये जल्वागाह-ए-हुस्न-ए-जानन अलविदा
तेरे घर से एक ज़िंदा लाश उठ जाने को है
आ गले मिल लें की आवाज़-ए-जरस आने को है
आये मलिहाबाद के रंगीन गुलिस्तान अलविदा
हाई क्या क्या नेमतें मुझको मिली थीं बे-बहा
यह खामोशी यह खुले मैदान यह ठंडी हवा
वै, ये जान बख्श गुस्ताहाई रंगीन फिजा
मार्के भी इनको न भूलेगा दिल-ए-दर्द आशना
मस्त कोयल जब दकन की वादियों मी जायेगी
यह सुब’ह की छाओं, बगूलों की बोह’टी याद आयेगी
आये मलिहाबाद के रंगीन गुलिस्तान अलविदा
कल से कौन इस बाघ को रंगीन बनाने आएगा
कौन फूलों की हँसी पर मुस्कुराने आएगा
कौन इस सब्जे को सोते से जगाने आएगा
कौन इन पौदों को सीने से लगाने आएगा
कौन जागेगा कमर के नाज़ उठाने के लिए
चांदनी रातों को जानू पर सुलाने के लिए
ऐ मलिहाबाद के रंगीन गुलिस्तान अलविदा
आम के बाघों में जब बरसात होगी पुर्खारोश
मेरी फुर्कात में लहू रोएगी चश्म-ए-मैं-फरोश
रस की बूँदें जब उर देंगी गुलिस्तानों के होश
कुञ्ज-ए-रंगीन में पुकारेंगी हवाएं जोश जोश
सुन के मेरा नाम मौसम घम्ज़दा हो जायेगा
एक मह्षर सा गुलिस्तान में बापा हो जायेगा
ऐ मलिहाबाद के रंगी गुलिस्तान अलविदा
आ गले मिल लें खुदा हाफिज़ गुलिस्तान-ए-वतन
आये अमानीगंज के मैदान आये जान-ए-वतन
अलविदा ई लालाज़ार-ओ-सुम्बुलिस्तान-ए-वतन
अस्सलाम आये सोहबत-ए-रंगीन-ए-यारां-ए-वतन
हश्र तक रहने न देने तुम दकन की ख़ाक में
दफन करना अपने शायर को वतन की ख़ाक में
ऐ मलिहाबाद के रंगीन गुलिस्तान अलविदा
Friday, May 2, 2008
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